“धर्म गुरु स्वामी ज्ञान स्वरूप महाराज”
भूमिका
‘धर्म गुरू’ ज्ञान स्वरूप जी महाराज रैगर समाज में सनातनी धर्म परम्परा के अग्रणीय संत महापुरूष हुए । आपने समाज को अंधकारमय परिस्थितियों से मुक्ति हेतु संस्कारित करने, सामाजिक, धार्मिक व शैक्षणिक चेतना तथा विभिन्न सुधारों द्वारा समाज को संगठित करने में विशेष भूमिका रही ।
स्वामी जी के द्वारा किये सद्कार्यों व जीवन संबंधित परिचय या उल्लेख, ‘सर्य’ को ‘दीप’ दिखाने के समान है । परन्तु ऐसा करना भी अवश्यमभवी है, ताकि स्वामी जी का तेजोमय दिव्य प्रकाश इन शब्दों के माध्यम से वर्तमान व भविष्य में आने वाली पीढ़ियों तक पहुँच सके तथा रैगर समाज में उत्पन्न हुई, इस जीवन दायिनी गंगधार रूपी, मानव जाति के लिये कल्याणकारी परम्परा को, निरन्तर, निर्विघ्न, सुचारू रखा जा सके व इससे अनन्त युगों तक प्रेरणा प्राप्त होती रहे ।
मनुष्य में प्रेम-बन्धुत्व हो, सामाजिक कुरीतियों का नाश हो ।
चहुँ-मखी विकास हो, शिक्षा तथा ‘विवेकशील ज्ञान’ का प्रकाश हो ।।
दया दान सत नम्रता, सब घट हरि समान ।
ज्ञानस्वरूप यह भक्त का लक्षण जान ।।
गुरु धारा परिचय
जगत गरू शंकराचार्य के जीशी मठ से दीक्षित, तीर्थराज पुष्कर निवासी, परमहंस स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज के परम् शिष्य स्वामी मौजीराम जी महाराज (‘मौज आश्रम’ मीरपुर साख सिंध जोकि वर्तमान में पाकिस्तान में है) द्वारा धर्म के अद्वैत मत व सोलह संस्कारों से संस्कारित तथा दीक्षित कर ”स्वामी ज्ञानस्वरूपानन्द” को मानव मानव जाति के कल्याण हेतु समर्पित किया ।
सामाजिक तथा धार्मिक उपाधियां : ”रैगर रत्न” 27 सितम्बर 1986 को नई दिल्ली के ”विज्ञान भवन” में अखिल भारतीय रैगर महासभा (पंजी.) के तत्कालीन अध्यक्ष श्री धर्मदास शास्त्री (पूर्व सांसद) की अध्यक्षता में ”पंचम् अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन” भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम श्री ज्ञानी जैल सिंह जी की विशिष्ट उपस्थिति में आयोजित किया गया । जिसमें महामहिम राष्ट्रपति जी ने समाज हेतु की गई, विशिष्ट सेवाओं के प्रति, स्वामी ज्ञानस्वरूप महाराज को निर्वाणोपरान्त, भारत-सरकार की ओर से स्वर्ण पदक तथा ”रैगर-रत्न” की उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया । जिसे स्वामी जी के उत्तराधिकारी शिष्य स्वामी श्री रामानन्द ‘जिज्ञासु’ जी ने ग्रहण किया ।
धर्म गुरू की उपाधि : 18 सितम्बर, 1988 को नई दिल्ली के ‘तालकटोरा इण्डोर स्टेडियम’ में आयोजित अखिल भारतीय सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा द्वारा डा. गिरधारी लाल गोस्वामी जी की अध्यक्षता में ”सनातन धर्म प्रतिनिधि सम्मेलन” में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति महामहिम डा. शंकर दयाल शर्मा जी ने श्रृंगेरी मठ के जगत गुरू शंकराचार्य श्रीश्री भारती तीर्थ महाराज जी के सानिध्य में, स्वामी ज्ञानस्वरूप महाराज जी को निर्वाणोपरान्त, सनातन धर्म के प्रति की गई विशिष्ट सेवा तथा सद्भावनापूर्ण जनकल्याण के प्रति समर्पित सेवाओं के लिए, ”धर्म गुरू” की उपाधि से सुशोभित कर सम्मानित किया । जिसे स्वामी मौजीराम सत्संग सभा के तत्कालिन प्रधान श्री हेमेन्द्र कुमार मोहनपुरिया (पूर्व निगम पार्षद) ने ग्रहण किया ।
इसी प्रतिनिधि सम्मेलन में अन्य संतों में श्री आद्याकात्यायनी शक्तिपीठ, छत्तरपुर मन्दिर, दिल्ली के संत बाबा नागपाल जी महाराज, महाराष्ट्र के संत रामचन्द्र डोगरे महाराज, गुजरात के संत मुरारी बापू जी को भी ”धर्म गुरू” की उपाधि से सुशोभित किया गया ।
स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज को प्राप्त उपरोक्त अलंकरण तथा उपाधियां, उनके द्वारा किये कल्याणकारी सामाजिक व धार्मिक प्रयासों का ही फल है ।
जीवन सारांश
रैगर समाज में धर्म-संस्कृति, सामाजिक-धार्मिक जागृति तथा समाज सुधार के सूत्रपात एवम् सफल प्रयोग के परिणामस्वरूप, बीसवीं शताब्दी रैगर समाज के इतिहास का स्वर्ण काल है, इस काल में ही रैगर समाज में महान विभूतियों तथा संत परम्परा, त्यागी समाजसेवियों, शिक्षित, बुद्धिजीवी अधिकारियों, दिल्ली स्वयंसेवक मण्डल तथा सत्संगियों का समाज सुधार के साथ सामाजिक विकास व प्रगति हेतु धार्मिक जागरण के साथ-साथ शिक्षा के प्रति चेतना का प्रसार कर सामाजिक नव निर्माण की नींव डाली तथा इसमें समाज के समस्त संत-महात्माओं का विशेष योगदान व सहयोग भी सराहनीय रहा जिसमें ‘धर्मगुरू’ स्वामी ज्ञान स्वरूप जी महाराज का विशष उल्लेखनीय योगदान रहा ।
स्वामी जी का जन्म : 21 अक्टूबर, 1895, आश्विन शुक्ल त्रियोदशी विक्रम संवत् 1952 को ग्राम गोहाना जिला अजमेर (राजस्थान) में रैगर समाज के श्री उदाराम गुसार्इंवाल जी की धर्म पत्नी श्रीमति मेंदी बाई के पुत्र रूप में जन्म हुआ स्वामी जी का जन्म का नाम गेनाराम था ।
बाल्यकाल : गेनाराम के माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे जिस कारण से अल्प आयु से ही बालक को धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए तथा बचपन से गेनाराम को पढ़ने के लिए विद्यालय भेजा गया क्योंकि उनके पिताजी चाहते थे कि पुत्र पढ़ना सीखकर उन्हें धार्मिक ग्रंथों गीता, रामायण, महाभारत तथा धर्मशास्त्रों को पढ़कर सुनाया करेगा ।
आरम्भ से ही गेनाराम ने काफी मन लगाकर पढ़ाई की इसलिए प्राथमिक शिक्षा से ही हिन्दी भाषा में काफी योग्यता प्राप्त कर ली । लेकिन ग्राम गोहाना की आबादी कम होने के कारण विद्यालय राजकियावास ग्राम स्थानान्तरित हो गया । इस तरह पढ़ने में लग्न होने पर भी आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकें । किशोरावस्था में पारिवारिक वातावरण के अनुसार स्वामी जी की, धार्मिक आध्यात्मिक पुस्तकों के अध्ययन के परिणाम स्वरूप भगवद् भक्ति में आस्था स्थापित हो गई । अब वह चिंतनशील जीवन व्यतीत करने लगे । एक बार ग्राम गोहाना में स्वामी मौजीराम जी पधारे स्वामी जी काफी प्रसिद्धि प्राप्त थे । ऐसे अवसर पर उनके उपदेशक प्रवचन बालक गेनाराम ने भी सुने व आत्मसात् किये तब स्वामी मौजीराम जी ने कहा कि ”प्रत्येक व्यक्ति को सदा अच्छे विचारों पर दृढ़ रहना चाहिए ।” भौतिकता से आध्यात्मिकता की ओर मार्ग प्रशस्त करने वाले धर्म उपदेशों पर विस्तार सहित प्रकाश डाला जिनसे बालक गेनाराम अत्यंत प्रभावित हुए तभी से पारिवारिक जीवन से विमुख रहने लगे सन् 1910 में पिताजी का, 1914 में माताजी, भाभीजी व एक भाई व भतीजे का स्वर्गवास हो गया । परिणाम स्वरूप कुछ समय के पश्चात् परिवार के बुजुर्गों ने गेनाराम के विवाह के प्रयास आरम्भ कर दिए । परन्तु उन्होंने समस्त सांसारिक बंधनों को त्यागकर अपने आप को स्वामी मौजीराम जी के चरणों में अर्पित तथा वैराग्य को समर्पित करने का निश्चय कर लिया ।
गुरू की शरण : समस्त सांसारिक बंधनों को त्याग कर, गेनाराम जी मीरपुर खास सिंध (पाकिस्तान) ”मौज आश्रम” में पहुँच गये । स्वामी मौजीराम जी के सानिध्य में सन् 1915-16 लगभग दो वर्ष तक रहे । तत्पश्चात् 12 अगस्त 1917 को 21 वर्ष की आयु में रक्षाबंधन के पर्व पर स्वामी मौजीराम जी ने गुरू सेवा व भक्ति से प्रसन्न होकर गेनाराम को ”ज्ञानस्वरूपानंद” जी के रूप में शिष्यत्व प्रदान किया । दीक्षा के बाद ज्ञानस्वरूप जी ने कई वर्षों तक गुरू आश्रम में रहकर गुरू जी से ज्ञान-योग, कर्म-योग, भक्ति-योग आदि की शिक्षा ग्रहण की तथा शास्त्रों का गहन स्वाध्याय किया व आपने अथक परिश्रम से साधना कर के अनंत ज्ञान को अर्जित किया ।
भारत-भ्रमण तथा समाजोत्त्थान : ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् आपने भारत भ्रमण करके देखा कि समाज आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत दुर्दशाग्रस्त है तब आपने समाज का कायाकल्प परिवर्तित करने का संकल्प लिया तथा समाजोत्त्थान के कार्य में लग गये । आपने सामाजिक कुरीतियों का अंत करने के लिए सत्संगों, सम्मेलनों व जलसों के माध्यम से जनजागृति पैदाकर सामाजिक उत्त्थान का कार्य किया ।
शास्त्र रचना : स्वामी जी ने सामाजिक नव-निर्माण के कार्यों के साथ-साथ, धार्मिक ग्रंथ शास्त्रों की रचना कर उनके माध्यम से भी आध्यात्मिक जनचेतना के लिये कार्य किया । आपके द्वारा रचित शास्त्र निम्नलिखित है :-
1. ज्ञान भजन प्रभाकर
2. अथ आत्मज्ञान भास्कर
3. सन्ध्यादि नित्त्यकर्म
4. कुण्डलियाँ
सम्मेलनों के माध्यम से सामाजिक जागृति : समाज की स्थिति को सुधारने हेतु स्वामी ज्ञानस्वरूप जी ने अखिल भारतीय स्तर पर रैगर समाज के महासम्मेलन में प्रेरणादायी कार्य कर विशेष रूप से योगदान दिया जिसमें आपके ही परम् शिष्य स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जी ने विशेष भूमिका निभाई । आप से अन्य समाजों को भी प्रेरणा मिली ।
ऐतिहासिक महासम्मेलन : 28-29 मई, 1944 को स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज की अध्यक्षता में कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ और यह निर्णय किया गया कि 2,3,4 नवम्बर, 1944 को दौसा में प्रथम महासम्मेलन का आयोजन किया जाए । स्वामी ज्ञानस्वरूप जी के सानिध्य में स्वामी जी के परम शिष्य स्वामी आत्माराम जी ‘लक्ष्य’ ने अखिल भारतीय रैगर महासभा नामक संस्था की स्थापना की । इस महासम्मेलन में अखिल भारतीय रैगर महासभा के प्रधान श्री भोलाराम तौणगरिया जी को बनाया गया ।
द्वितीय महासम्मेलन : जयपुर में 12-13 अप्रैल 1946 को सम्पन्न हुआ जिसमें स्वामी जी की विक्टोरिया रथ पर विशाल शोभा यात्रा तथा जलूस निकाला गया । स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ जी ने ध्वजारोहण कर सम्मेलन का शुभारम्भ किया जिसमें महाराज ज्ञानस्वरूप जी ने दूरदर्शी मार्गदर्शक के रूप में अपने विचार समाज के सम्मुख रखते हुए, शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि-
”शिक्षा शून्य कौम कभी भी धन सम्पन्न व सभ्य नहीं हो सकती; जैसे करोड़ों उपाय करने पर भी बीना सूर्य उदय हुए रात्रि का अन्त नहीं होता ; अगर आप अपनी कौम का भविष्य सम्मानमय् देखना चाहते हो तो विद्या पढ़ाईये । ”
उपरोक्त दोनों महासम्मेलन स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज, स्वामी आत्माराम जी ‘लक्ष्य’ के द्वारा सम्पन्न हुए, सत्संगियों व समाजसंवियों तथा दिल्ली प्रांतीय स्वयं सेवक मण्डल का कार्य भी सराहनीय रहा । इस सम्मेलन में अखिल भारतीय रैगर महासभा का प्रधान श्री कन्हैयालाल रातावाल जी को बनाया गया ।
शिक्षा के प्रसार हेतु छात्रावास का निर्माण
सन् 1950 में मारवाड़ क्षेत्र नागोरी गेट (जोधपुर, राजस्थान) में श्री ज्ञानगंगा छात्रावास की स्थापना कर शिक्षा के प्रसार हेतु आपने अतुलनीय योगदान दिया । वर्तमान में श्री ज्ञानगंगा छात्रावास का संचालन राजस्थान जटिया (रैगर) विकास सभा (रजि.) करती है । प्रथम अध्यक्ष स्वमी ज्ञानस्वरूप महाराज ही थे । इसी परम्परा के अन्तर्गत खेतानाड़ी, मण्डोर रोड़ जोधपुर (राज.) में भी छात्रावास स्थापित किया गया है जिसमें स्वामी गोपाल राम जी तथा स्वामी रामानन्द ‘जिज्ञासु’ जी ने महत्वपूर्ण कार्य किया है रींगस (राजस्थान) में भी ”त्यागमूर्त्ति स्वामी आत्माराम ‘लक्ष्य’ छात्रावास” की स्थापना हुई जो स्वामी ज्ञानस्वरूपजी की प्रेरणा का ही परिणाम है । जयपुर में निर्माणधीन रैगर छात्रावास इस क्रम की अगली कड़ी साबित होगी ।
तृतीय महासम्मेलन : 17,18,19 नवम्बर, 1964 को सम्पन्न तृतीय पुष्कर महासम्मेलन का शुभारंभ स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज के कर कमलों द्वारा हुआ । कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली निवासी श्री नवल ‘प्रभाकर’ जाजोरिया जी तत्कालिन सांसद (लोकसभा) करोल बाग ने की । इसमें पूर्व महासम्मेलनों में पारित प्रस्तावों पर विचार हुआ तथा समाजोपयोगी प्रस्ताव पारित किये गये । और श्री नवल ‘प्रभाकर’ जी अखिल भारतीय रैगर महासभा के अध्यक्ष बनाए गए ।
अजमेर अखिल भारतीय रैगर महासभा कार्यकारिणी की बैठक : अजमेर में अखिल भारतीय रैगर महासभा कार्यकारिणी तथा विशिष्ट व्यक्तियों की दिनांक 8-9 अक्टूबर, 1977 की बैठक में प्रस्ताव संख्या 6 के अन्तर्गत श्री छोगालाल कंवरिया जी को अ.भा. रैगर महासभा का प्रधान बनाया गया ।
चतुर्थ महासम्मेलन : स्वामी ज्ञानस्वरूप जी के आशीर्वाद से तथा श्री धर्मदास शास्त्री तत्कालिन सांसद करोलबाग, के प्रयासों से 6-7 अक्टूबर 1984 को जयपुर में आयोजित किया गया जिसमें विशिष्ट अतिथि भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री तथा विश्व नेत्री श्रीमति इन्दिरा गांधी जी ने रैगर समाज का सम्मान करते हुए सम्बोधित किया । इस समय अखिल भारतीय रैगर महासभा के अध्यक्ष राजस्थान सरकार के पूर्व चिकित्सा मंत्री श्री छोगालाल कंवरिया जी थे । इस महासम्मेलन में श्री धर्मदास शास्त्री जी सांसद को नवनियुक्त प्रधान घोषित किया गया । इस में स्वामी रामानन्द ‘जिज्ञासु’ जी की उपस्थिति भी उल्लेखनीय है ।
ज्ञानस्वरूप अद्वैत आश्रम निर्माण : 15 अगस्त 1947 भारत विभाजन के पश्चात् स्वामी जी सिंध से ब्यावर आ गये । जहाँ अमर पटेल जी के यहाँ काफी समय रहने के पश्चात् बड़ा बास में आश्रम बनवाया । सन् 1953 में स्वामी जी बड़ा बास से नव आबंटित ”ज्ञानस्वरूप अद्वैत आश्रम” जटिया कालोनी, नेहरू नगर ब्यावर राजस्थान पधार गये । स्वामी जी का शेष जीवन यही बीता इसे अब ”धर्म गुरू ज्ञानस्वरूप अद्वैत आश्रम” के नाम से ख्याति प्राप्त है । आश्रम में खड़ाऊ, कमण्डल, रूद्राक्ष माला, हस्तलिखित पांडुलिपियाँ और दुर्लभ ग्रंथ आदि आज भी स्वामी जी स्वरूप महान संत की उपस्थिति का अहसास करवाते है जोकि स्मृति में सुरक्षित हैं ।
धार्मिक स्थलों की स्थापना
1. विष्णु मंदिर (करोल बाग) : भारत की राजधानी दिल्ली के मध्यक्षेत्र, करोल बाग, 18, रैगरपुरा पर स्वामी मौजीराम जी महाराज एवम् स्वामी ज्ञानस्वरूप जी तथा उनके दिल्ली निवासी शिष्यों के उदार हृदयी प्रयासों से विष्णु मंदिर का निर्माण हुआ महाराज जी जब भी दिल्ली आते थे तो इसी स्थल पर ठहरते थे तथा विश्राम करते थे । इसी कारण मंदिर निर्माण से पूर्व यह स्थान ”गुरूद्वारा” के नाम से प्रसिद्ध था । यह स्वामी मौजीराम जी महाराज द्वारा समाज में आरंभ की गई सर्वकल्याणकारी धर्म की गंगधारा तथा ”ज्ञानस्वरूप पंरम्परा” स्वामी आत्माराम जी ‘लक्ष्य’ ; स्वामी रामानन्द जी ‘जिज्ञासु’ तथा स्वामी अनन्तानन्द जी (पं. चुन्नीलाल सौकरिया) व पूज्यनीय संतों के नाम से विष्णु मंदिर रैगरपुरा करोल बाग दिल्ली में सर्वप्रमुख विश्राम स्थल तथा स्मारक स्थल भी हैं मन्दिर के द्वितीय तल पर ”धर्मगुरू स्वामी ज्ञानस्वरूप सत्संग सभागार” बना हुआ है जिसमें वरिष्ठ गुरूओं की प्रतिमाओं के साथ साभागार के मध्य में स्वामी ज्ञानस्वरूप जी की आभामयी भव्य प्रतिमा स्थापित है ।
2. शालिग्राम मन्दिर (मलूसर) : 25-05-1951 को स्वामी ज्ञानस्वरूप जी के कर कमलों द्वारा मलूसर, अजमेर (राज.) स्थित शालिग्राम मन्दिर में मूर्ति स्थापना मन्दिर कलश ध्वजारोहण स्वामी जी द्वारा किया गया तथा इस क्षेत्र में एक पंचायत के माध्यम से सामाजिक सुधार का कार्यक्रम आरम्भ किया गया ।
3. गंगा माई मन्दिर (संतगनर, नई दिल्ली) : सन् 1957 में संतनगर करोल बाग में श्री गंगा माई जी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा स्वामी जी द्वारा की गई ।
4. श्री त्रिवेणी गंगा मन्दिर (साईवाड़) : इस मन्दिर में श्री गंगा माई की मूर्ति प्राण-प्रतिष्ठा स्वामी जी द्वारा 5 मार्च, 1969 को ग्राम साईवाड़ (राज.) में की गई ।
5. श्री गंगा मन्दिर (ब्यावर) : 20-04-1976 को जटिया कालोनी ब्यावर में श्री गंगा माई मन्दिर का शिलान्यास स्वामी जी द्वारा किया गया ।
6. श्री बाबा रामदेव मन्दिर (बीडनपुरा नई दिल्ली करोलबाग) : 18 सितम्बर, 1980 को श्री बाबा रामदेव जी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा स्वामी जी द्वारा की गई ।
7. ”जिज्ञासु आश्रम” (पीपाड़) : सन् 1982 में ‘स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज’ द्वारा पीपाड़ शहर (राज.) में विशाल आश्रम का शिलान्यास किया गया जिस कार्य कों स्वामी ‘स्वामी रामानन्द जिज्ञासु जी’ द्वारा पूर्ण किया गया । यह आश्रम अपनी भव्यता तथा विशालता के लिये ”जिज्ञासु आश्रम” के रूप में प्रसिद्ध है ।
8. रैगर धर्मशाला हरिद्वार : विश्व की पवित्र धार्मिक नगरी हरिद्वार (बिरला रोड़) पर रैगर धर्मशाला का उद्घाटन 19 जून 1983 को स्वामी रामानन्द जिज्ञासु जी (पीपाड़) तथा स्वामी गोपाल राम जी महाराज (नागौर) के अथक प्रयासों से आप दोनों की ही उपस्थिति में उद्घाटन हुआ । समाज हित में इस धर्मपरायण व सराहनीय कार्य हेतु भी सर्वप्रथम स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज का आदेश तथा इसमें स्वामी केवलानन्द जी का सहयोग रैगर समाज के लिए सदा अविस्मरणीय रहेगा । हरिद्वार में रैगर धर्मशाला की स्थापना सदा रैगर समाज के महान सपूतों एवम् इन महान संतो की अमर कीर्ति पताका फहराती रहेगी । जिसमें समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सहयोग हेतु भी तत्पर रहना होगा, क्योंकि यह समाज की अमूल्य धरोहर है ।
वैचारिक योगदान
किसी भी कार्य के लिए सर्वप्रथम विचार ही मन-मस्तिष्क में जन्म लेते है । उनको साकार करने और क्रांति रूप देने के लिए प्रचार-प्रसार की अति आवश्यकता होती है । संभवत: इसी विचार को दृष्टिगत् रखकर स्वामी ज्ञानस्वरूपजी की अध्यक्षता में 2 अक्टूबर 1948 को ”जागृति पत्र प्रकाशन समिति” संस्था की स्थापना की गई तथा ”जागृति” राष्ट्रीय समाचार पत्र का प्रथम अंक भी इसी दिन प्रकाशित किया गया । सम्पादक का कार्यभार ब्यावर निवासी ‘स्वतंत्रता सेनानी’ श्री सूर्यमल मोर्य जी ने संभाला इस पत्र के केवल 30 अंक ही प्रकाशित हो सके । अब स्वामी जी के इस अधूरे स्वप्न को पूर्ण करने में विशेषत: रैगर ज्योति पत्रिका (हिन्दी मासिक), रैगर रधुवंशी रक्षक (पाक्षिक समाचार पत्र), भारत-दशा (पाक्षिक समाचार पत्र), रैगर समाज की वेबसाईट (www.theraigarsamaj.com) व अन्य पत्र-पत्रिकायें दिन-रात संलग्न है, ताकि स्वामी जी के ध्येय को शीघ्र प्राप्त किया जा सके । समस्त समाज को इस महायज्ञ में अपना विशेष योगदान निरन्तर जारी रखना होगा ।
विशाल अविस्मरणीय सत्संग : तत्कालीन सनातन धर्म सत्संग सभा (वर्तमान स्वामी मौजीराम सत्संग सभा) का ”31वाँ वार्षिक महोत्सव” पण्डित मदन मोहन मालवीय जी के शिष्य ‘गोस्वामी श्री गणेश दत्त महाराज जी’ की अध्यक्षता तथा ‘स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज’ के सानिध्य में दिनांक 9-10 अप्रैल 1949 को विष्णु मन्दिर, 18, रैगरपुरा पर बड़े उत्साहपूर्वक मनाया गया । महात्सव में प्रतिष्ठित धर्मप्रेमियों में दिल्ली क्लोथ मिल्स के सेठ ‘सर’ श्रीराम-बिड़ला परिवार के सेठ श्री जुगल किशोर बिड़ला, लोकसभा उपाध्यक्ष श्री अनन्त शयनम् आयंगर, तत्कालीन चीफ कमिश्नर परामर्शदात्री समिति दिल्ली के सदस्य डा. खूबराम जाजोरिया जी एवम् गोस्वामी गिरधारी लाल शास्त्री आदि महानुभाव धर्मप्रेमी धार्मिक जगत के महान विभूति स्वरूप संतों के चरण कमलों में उपस्थित थे । सत्संग सभा के तत्कालीन प्रधान श्री रामस्वरूप जाजोरिया जी तथा मंत्री श्री कंवर सैन मौर्य जी की अति विशिष्ट व उल्लेखनीय भूमिका रही ।
सनातन धर्म तथा समाज को असीम भेट : स्वामी जी ने अपने परम शिष्य त्याग मूर्ति स्वामी आत्माराम जी ‘लक्ष्य’ स्वामी रामानन्द जी ‘जिज्ञासु’ तथा स्वामी अनंतानन्द जी (पं. चुन्नीलाल सौंकरिया जी) के रूप में समाज को पथ-प्रदर्शक तथा प्रकाश सतम्भ दिये । जिनके असीम प्रकाश की अविस्मरणीय झलक आज भी समाज में प्रकाशपुँज दायिनी है । जिन्होंने सम्मेलनों के माध्यम से शिक्षा तथा सामाजिक सुधारों के लिये विशेष योगदान कर, सामाजिक कुरीतियों के अंत के लिए मार्ग प्रशस्त किया ।
स्वामी ज्ञानस्वरूप जी का ”महानिर्वाण” : ”जिज्ञासु-आश्रम” पीपाड़ शहर जोधपुर (राजस्थान) में दिनांक 25 फरवरी, 1985 को स्वामी रामानन्द जिज्ञासु जी की उपस्थिति में ”महानिर्वाण” को प्राप्त हुए । स्वामी जी के ब्रह्मलीन होने की सूचना मिलते ही सारे देश से उनके श्रद्धालु शिष्य जन अंतिम दर्शनार्थ श्रद्धा सुमन अर्पित करने को जिज्ञासु आश्रम पहुँचते रहे । स्वामी जी की पावन देह 26-27 फरवरी, 1985 तक श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखी गई 28 फरवरी, 1985 को उनके हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में भव्य विशाल अन्तिम यात्रा निकाली गई उनकी पावन देह वैदिक मन्त्रोचार के साथ अग्नि को समर्पित की गई ।
इस प्रकार ‘धर्मगुरू’ स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज सामाजिक कल्याणकारी धर्म की अविरल परम्परा का सूत्रपात कर, परमपिता परमात्मा में विलीन सदा-सदा के लिए अजर-अमर हो गये तथा प्रकाश-पुँज रूप में सदा हमें प्रेरित करते रहेंगे ।
धर्मगुरू ज्ञानस्वरूपजी महाराज की प्रणाली में दिल्ली प्रांत की प्रमुख संस्थाएँ :
1. गुरू ज्ञानस्वरूप सुमिरन समिति (रजि.), करोल बाग, नई दिल्ली
2. स्वामी मौजीराम सत्संग सभा (रजि.), रैगर पुरा
3. ‘धर्मगुरू’ स्वामी ज्ञानस्वरूप सत्संग सभा (रजि.), मादीपुर
4. स्वामी रामानन्द जिज्ञासु सत्संग सभा (रजि.), 72, रैगरपुरा, करोल बाग
5. स्वामी रामानन्द जिज्ञासु प्रतिष्ठान
मौका आया तरन का नर तन मिलिया तोय ।
चेत बावरा भज हरि यह अवसर मत खोय ।।
यह अवसर मत खोय भेद सतगुरू दरवासे ।
मिटे चौरासी फेर सहज परमानन्द पावे ।।
कहे ज्ञानस्वरूप बैठ भक्ति की नौका ।
भूले भव भटकाय फेर नहीं आवे मौका ।।
कार्यालय : 15/568-आई, बापा नगर, आर्य समाज रोड़, करोलबाग, नई दिल्ली-110005
सम्पर्क : 09868261957, ऑफिस : 011-51596280
(साभार : गुरू ज्ञानस्वरूप सुमरण समिति (पंजी.))